शनिवार, 19 सितंबर 2020

सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चरित्र का मतलब आसान भाषा में - The meaning of Right Faith, Right Knowledge and Right Conduct in Simple Language

सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र की परिभाषा और अर्थ समझने से पहले कुछ हलकी - फुलकी बात करते हैं। यह बात तीन चरणों में होगी। 

१) मान ली जिए आप अपनी किसी आदत से परेशान हैं और छोड़ना चाहते हैं, जैसे की चाय पीने की आदत। पहले चरण में इस चाय पीने की आदत में सबसे पहले उन बातों को देखते हैं, जो है, जैसे कि, चाय, आप, आदत। इस चाय पीने की आदत में ये तीन चीज़े हैं। इसे हम देख सकते हैं और मान सकते हैं। अभी इसमें तर्क नहीं है। इसमें से किसी भी चीज़ को हम नहीं मानेंगे तो हम अगले चरण में नहीं जा पाएंगे। जैसे आपने खुद के होने के भाव को मान लिया, चाय के होने के भाव को मान लिया, लेकिन अगर आदत के होने के भाव को नहीं माना तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे। 

२) अब हम उस चरण में आते हैं जहॉं हम चाय के बारे में, ख़ुद के बारे में और इस आदत के बारे में ज़्यादा गहराई से जानना शुरू करते हैं। जैसे कि, चाय की आदत बुरी है, मुझे चाय की आदत लग चुकी है, चाय मेरे शरीर के लिए ठीक नहीं है, चाय से क्या - क्या हानियाँ है शरीर को, चाय छोड़ने के उपाय ढूंढने होंगे, जिन लोगों ने चाय छोड़ी है उनसे बात करनी होगी, वगैरह - वगैरह। आप इन बातों का पूरा ज्ञान अलग-अलग माध्यम से लेते हैं, अपने आप से पूछ कर, दूसरों से पूछ कर, कहीं पढ़ कर, कुछ देख कर। 

३) इतना बस मान लेने से और जाना लेने से चाय नहीं छूटेगी। तीसरे चरण में हम काम पर लगते हैं। चाय छोड़ने के सारे उपायों को अपने ऊपर लागु करना, चाय छोड़ने के संकल्प लेना, आदि। ऐसा करते - करते एक दिन आपकी चाय छूट जाती है। इसमें सफलता तब है जिस दिन आपकी चाय हमेशा के लिए छूट जाए। फिर आप और लोगों में भी अनुभव बांटते हैं और उनकी भी मदद करते हैं। 

एक दूसरे उदहारण में घर बनाने की प्रक्रिया को समझते हैं,

१) पहले चरण में, फिर से, उन तथ्यों को सामने रखते हैं जो है। आप, आपकी घर बनाने की इच्छा, आपका बजट, ठेकेदार, ज़मीन, ईंट, पत्थर, सीमेंट, लोहा, लकड़ी, रेत, पानी, वगैरह। इन्हें हम मान सकते हैं, देख सकते हैं। यहां हमें समझने के लिए ये मानना है कि ये सब हमेशा से है, इसकी शुरुआत हमने नहीं की। अभी इसमें तर्क नहीं है।

२) दूसरे चरण में हम पहले चरण के सभी बातों का गहराई से जानकारी लेना शुरू करते हैं।। शुरुआत कहाँ से होती है घर बनाने की ? कैसा बनाना चाहिए ? कौनसा ठेकेदार अच्छा है ? कौनसी सीमेंट अच्छी है ? सीमेंट में कितना पानी मिलाना चाहिए ? दीवार कितनी चौड़ाई की रखनी चाहिए ? नींव कितनी रखनी चाहिए ? एक मंज़िला बनायें कि दो मंज़िला ? वगैरह - वगैरह। 

३) तीसरे चरण में, हर चीज़ के ठीक तरीके से जानकारी लेने के बाद हम काम पर लगते हैं, क्योंकि बस जानकारी ले लेने से घर नहीं बनता। जब हम काम पर लग जाते हैं तो धीरे-धीरे घर भी तैयार हो जाता है। इस सफर में हम सफल तब कहलाते हैं जब हमारा बहुत ही सुन्दर और ज़रूरतों के अनुकूल घर तैयार हो जायेगा। फिर हम अपना अनुभव और लोगों में भी बाँटते हैं। 

सक्षेप में हमने ये किया,

पहले हमने उसे माना जो है, फिर हमने उसका गहराई से ज्ञान लिया, फिर उस ज्ञान की मदद से काम पर लगे और सफल होने पर लोगों से अपना अनुभव बांटा। आप गौर कीजिये ये तीनों चरण एक दूसरे से किस तरह से जुड़े हुए हैं और एक क्रम में है।

आप सोच रहे होंगे मैं ये किस तरह के उदहरण दे रहा हूँ लेकिन लेकिन इन उदाहरणों का मतलब आप ख़ुद ब ख़ुद समझ जायेंगे जब आप तीनो रत्न -  सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चरित्र के अर्थ को समझेंगे। 

१) सम्यक् दर्शन :- पहले चरण में होता है दर्शन यानी देखना। इस ब्रह्माण्ड की उन सभी बातों को देखना और मानना जो मूल रूप से है, जैसे की ७ तत्त्व। तत्वों के सच की सही और अच्छे ढंग से जानकारी लेना सम्यक दर्शन है। आसान शब्दों में जीव, अजीव, कर्म, कर्मों का बंधन, कर्मों के परिणाम और मोक्ष के होने के भाव के समझना दर्शन है। 

७ तत्वों के नाम - जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष

जब तक इन सात तत्त्वों के सच हम अच्छे से समझ नहीं लेते और मान नहीं लेते, तब तक हम दूसरे चरण में नहीं जाते। 

२) सम्यक् ज्ञान :- तत्वों के सच को मानने के बाद, दूसरे चरण में आता है, उनका बौद्धिक और तार्किक द्रष्टी से ज्ञान लेने प्रक्रिया जिसे हम सम्यक् ज्ञान कहते हैं। ये ज्ञान हम आम तौर पर देख कर, महसूस कर, सूंघ कर, चख कर, सुन कर, और पढ़ कर लेते हैं।

ज्ञान लेने के पांच तरीके - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यय, केवलज्ञान

जब तक हम तत्त्वों का हर द्रष्टी से पूरा ज्ञान नहीं लेते, तब तक हम तीसरे चरण में नहीं जाते।

३) सम्यक् चरित्र :- इन सभी सच को जानने और समझने के बाद आता है काम पर लगने यानी चरित्र में लेन का समय। सारा ज्ञान लेकर रख लेने से कुछ नहीं होगा। मोक्ष की प्राप्ति के लिए हमें उस ज्ञान पर अमल करना होगा और उसे अपने चरित्र में लाना होगा। इसको चरित्र में लाने के लिए हमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का मार्ग अपनाना होता है। 

इसके दो भेद - अणुव्रत (श्रावकों के लिए), महाव्रत (साधुओं के लिए)

इन व्रतों का पालन करके हम धीरे-धीरे मोक्ष के करीब पहुँचते हैं, बशर्ते हम इन सभी बातों का सम्यक् तरीके से बोध करने का लक्ष्य रखें। 

अब आप समझ ही गए होंगे कि रत्नत्रय कैसे एक - दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनके इसी क्रम में होने का क्या महत्व है। ये भी समझ गए होंगे कि मैंने वो अजीब से उदहारण क्यों दिए। वैसे तो ये बहुत ही गहरे विषय हैं, मगर मैंने इनकी गहराई को संक्षिप्त में और आसान शब्दों में बताने की कोशिश की है। 

सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चरित्र; ७ तत्त्व, ज्ञान के ५ भेद, व्रत के २ प्रकार, इन सभी की विस्तृत जानकारी देते हुए अलग से भी लिखूंगा। 

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परस्परोपग्रहो जीवानाम् !

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

सम्यक् का क्या अर्थ होता है ? What is the meaning of Samyak?

जैन दर्शन में रत्नत्रय का जिक्र होता है, यानी तीन रत्न - सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र। बिना रत्नत्रय के मोक्ष की प्राप्ति असंभव है। रत्नत्रय को जानने से पहले हम सम्यक शब्द का अच्छे से, पूरा - पूरा, ठीक - ठीक, सही, और उचित मतलब समझें। 

जी हाँ। सम्यक् का यही मतलब होता है - पूरा, ठीक, सही, उचित, अच्छे से, पुरे तरीके से, हर तरीके से, सच्चे तरीके से, सर्वथा, पूर्णतया, भली-भाँति

सम्यक् संस्कृत का शब्द है। 



आइये, सम्यक् शब्द को वाक्य में प्रयोग करते हैं। 

१. इस वर्ष परीक्षा में अव्वल आने के लिए मेरा सम्यक् अध्द्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण है। 
२. कुछ महीनों बाद मुझे ये एहसास हुआ कि मेरा व्यवसाय का चयन सम्यक् नहीं था। मैंने बंद कर दिया। 
३. अच्छा वैज्ञानिक बनने के लिए सम्यक् शोध और सम्यक् वर्णन दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण है। 
४. इन जंगली रास्तों की सम्यक् जानकारी लिए बगैर हम निकल गए। पता नहीं हम वापस बाहर निकल पाएंगे कि नहीं।
५. भरी सभा में इस तरह का कथन सम्यक् नहीं था। उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए। 

तो अगर सम्यक् नहीं है मतलब पूरा नहीं है, सही नहीं है, अधूरा है, अस्पष्ट है और अभी बचा है। अब आप समझ गए होंगे कि दर्शन, ज्ञान और चरित्र के आगे सम्यक लगाने का क्या अर्थ है। क्योंकि इन तीनों बातों का पूरा होना, सही होना ना सिर्फ़ ज़रूरी है बल्कि एक शर्त है। 
इसीलिए सम्यक् शब्द के अर्थ सम्यक् रूप से जानना ज़रूरी था। 
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गुरुवार, 17 सितंबर 2020

परस्परोपग्रहो जीवानाम् - Parasparopagraho Jivanam

परस्परोपग्रहो जीवानाम् - यह जैन दर्शन के आचार्य श्री उमास्वामी/उमास्वाति जी द्वारा संस्कृत में लिखे ग्रन्थ "तत्त्वार्थ सूत्र" के पांचवे अध्याय का इक्कीसवां श्लोक है। परस्परोपग्रहो जीवानाम् को जैन धर्म का आदर्श माना गया है।

इस शब्द का संधि विच्छेद करते हैं तो ये मिलता है,

परस्परोपग्रहो जीवानाम् = परस्पर + उप + गृह + जीवानाम्

परस्पर - एक दूसरे

उप - के प्रति 

गृह - सहायक या सेवक

जीवानाम् - जीव

यानी सभी जीव एक दूसरे के प्रति सहायक या सेवक की भूमिका में हैं। सभी जीव से मतलब है, सूक्ष्म जीव से लेकर इंसान तक सभी जीव। इस दुनिया के सारे जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं, एक दूसरे से बंधे हुए हैं, जुड़े हुए हैं। हमारे उपकार में किसी न किसी जीव का योगदान रहता है, और हम भी किसी न किसी जीव का उपकार करते हैं।  

हम सब अलग-अलग हैं फ़िर भी बंधे हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं। इस बात को एक उदहारण से समझते हैं। 

एक कमीज़ को देखिये। कहने को यह एक कमीज़ है लेकिन ये कई अलग - अलग टुकड़ों से बनी है। इस कमीज़ का हर एक टुकड़ा, चाहे कितना भी उच्च गुणवत्ता का और कितने भी सुन्दर रंगों का क्यों न हो, अलग-अलग रखें तो बेकार है, लेकिन जोड़ दें तो कमीज़ बनता है। पूरी कमीज़ को बने रहने में सारे टुकड़े एक दूसरे पर निर्भर है। किसी को बड़ा, छोटा, ज़्यादा या कम ज़रूरी नहीं कह सकते। इसी तरह अगर हम कमीज़ के एक टुकड़े को ध्यान से देखें तो वह कितने धागों के जुड़े रहने से बना है। बंधे रहने के लिए हर धागा दूसरे धागे पर निर्भर है।  

आप अकेले ही बहुत कुछ कर रहे हो दुनिया के लिए ये सोचना भी गलत है और आप हमेशा किसी न किसी पर निर्भर ही रहोगे ये मानना भी गलत है। हम सभी को सभी की ज़रूरत है। 

जब-जब इंसान मान और लोभ में आकर इस व्यवस्था से अपने आप को बाहर कर लेता है, तब-तब हमें अव्यवस्था, असंतुलन और अशांति देखने को मिलती है। आज के समय में अगर हम अपने चारों तरफ देखें तो ऐसा माहौल बढ़ता ही जा रहा है कई कारणों से। 

जैसे हम जानवरों, पेड़-पौधों, हवा, पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं, लेकिन हमने इनका ख़्याल रखना, इनके बारें में सोचना बहुत कम कर दिया है, और इस वज़ह हम इन क्षेत्रों में लगातार तकलीफों की तरफ बढ़ रहे हैं। 

हमारे नेता बन्दर बाँट का खेल खेल कर हमें बाँट देते हैं, और हम आसानी से उनकी बातों में आकर एक-दूसरे से झगड़ लेते हैं। नेताओं द्वारा खींची हुई लकीरों के कारण हम दंगो में अपनी जान गवां देते हैं। ये भी असंतुलन ही है जब हम भूल जाते हैं कि हमे एक-दूसरे का ख़्याल रखना है। 

चूँकि मैं एक आदर्शवादी और आशावादी इंसान हूँ तो मुझे लगता है चाहे समय जैसा भी हो, चारों तरफ कुछ भी चल रहा हो, अगर हमें परस्परोपग्रहो जीवानाम् में विश्वास है तो इस पर अमल हर क्षण करना चाहिए। समय बदले न बदले आप तो बदल ही जायेंगे अच्छे के लिए। शुरुआत तो खुद से ही होती है।

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परस्परोपग्रहो जीवानाम् ! 

अनेकांतवाद - Anekantavada

जैन दर्शन की बात की जाए तो कुछ शब्द अपने आप दिमाग में आते हैं, जैसे जय जिनेन्द्र, अहिंसा, महावीर, अपरिग्रह और अनेकांतवादअनेकांतवाद का सिद्धांत समझने में बड़ा ही रोचक और जीवन में काफी उपयोगी है। आइये समझे एक उदहारण से - 

चिंटू के दो पडोसी हैं। एक को हम शर्मा जी मान लेते हैं और दूसरे को शुक्ला जी।  चिंटू जब भी अपनी गली में घूम रहा होता है तो अक्सर शर्मा जी दिख जाते हैं, और वो कहते हैं, "क्यों रे चिंटू, दिन भर खेलता रहता है! पढ़ना नहीं होता?। जब शुक्ला जी चिंटू के घर आते हैं तो उन्हें चिंटू पढता हुआ नज़र आता है, तो शुक्ल जी कहते हैं चिंटू की मम्मी से, " आपका बेटा बड़ा होशियार है, कितना मन लगा कर पढता है।" चिंटू की मम्मी जवाब देती हैं, " नंबर तो आते नहीं लेकिन। अभी बैठा है डाँट खा कर। दिन भर खाता रहेगा और सोता रहेगा तो नंबर आएंगे भी कैसे।" 

ये और बात है कि दुनिया में कोई ऐसा बच्चा है नहीं जो उतने नंबर ला पाए जितने उसके माता-पिता को खुश कर दे। खैर! 

यहां पर सब चिंटू के बारे में अपना-अपना नज़रिया बता रहे हैं। अलग-अलग रखें तो सभी गलत हैं। चिंटू का असली सच तब मिलता है जब तीनों बातों को साथ में रखा जाए। लेकिन फ़िर भी पूरा सच नहीं मिलेगा। यही है अनेकांतवाद।

अनेकांतवाद को आसान शब्दों में ऐसे समझाया जाता है कि हर इंसान का अपना नज़रिया, अपना विचार होता है, और हमें हर नज़रिये, हर विचार का आदर करना चाहिए। किसी को गलत नहीं ठहराना चाहिए। 

लेकिन हम अगर इस शब्द का संधि विच्छेद करें, 

अनेकांतवाद = अनेक + अंत + वाद

अनेक - बहुत सारे

अंत - छोर 

वाद - कथन 

तो ये बनेगा कि किसी भी कथन के, यानी जो बात कही गयी है, उसके बहुत सारे छोर यानी पहलु होते है। कोई बात जो कई कही गयी है वो अपने में ही कभी भी पूरी नहीं होती। 

अनेकांतवाद को अंग्रेजी में कहा जाता है many - sidedness या many - foldedness। अनेकांतवाद को समझने के लिए छः अंधों और एक हाथी की कहानी का वर्णन प्रायः मिलेगा।  

अगर आप कोई वैज्ञानिक हैं या कोई शोधकर्ता हैं, तो आप अनेकांतवाद को ध्यान में रख कर अपने विषय के अधिक से अधिक पहलुओं को खोजेंगे। उससे आपकी शोध काफ़ी गहरी और सच के करीब होती चली जाएगी, मगर फ़िर भी पूरा सच नहीं। 

क्योंकि अनेकांतवाद में ५, १० या १०० पहलुओं की बात नहीं कही गयी, अनेक पहलुओं की बात कही है, इसीलिए ये कहा जाता है कि आप किसी भी बात के सभी पहलुओं को कभी नहीं जान सकते। जो जान गए तो आप कहलायेंगे केवलज्ञानी, जिसे हम किसी और दिन समझेंगे। 

यह सिद्धांत न सिर्फ बड़े निर्णय लेने में, बल्कि छोटी-छोटी बातों में भी बड़ा काम आता है। जैसे कि अगर आप इसको हमेशा ज़हन में रखेंगे तो किसी के बारे में भी आप पहली नज़र में राय बनाना छोड़ देंगे। आपको हमेशा लगेगा कि शायद जो मैंने देखा है सुना है वो गलत भी हो सकता है और सही भी है तो ये पूरा सच तो हो ही नहीं सकता। आप किसी व्यक्ति को बेहतर जान पाएंगे और उसके प्रति संवेदनशील हो पाएंगे

ये सिद्धांत आपको हमेशा जिज्ञासु बनाये रखता है, और सबसे ख़ास बात ये आपको एक तरफ़ा या पक्षपाती होने से बचाता है, जिसकी आज के समय, जो की बड़ा polarized और extremist है, को बहुत ज़रूरत है। 

अब अनेकांतवाद के नाम में अनेक अंत है तो अब आप ये भी समझ गए होंगे कि इसको समझाने का और इसको समझने का भी एक ही तरीका नहीं हो सकता। इसको जितना भी समझ पाया या कोई बढ़िया उदहारण बना पाया तो इसमें जोड़ता रहूंगा।

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परस्परोपग्रहो जीवानाम् !

अनेकांतवाद और आज की ताज़ा खबर - Anekantavada and the Headlines of the Day

गाँधी जी ने सालों पहले एक बढ़िया मंत्र दे दिया था - बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो ; मगर जब बुरे का पता ही नहीं चले तो करें क्या? ...