गुरुवार, 17 सितंबर 2020

अनेकांतवाद - Anekantavada

जैन दर्शन की बात की जाए तो कुछ शब्द अपने आप दिमाग में आते हैं, जैसे जय जिनेन्द्र, अहिंसा, महावीर, अपरिग्रह और अनेकांतवादअनेकांतवाद का सिद्धांत समझने में बड़ा ही रोचक और जीवन में काफी उपयोगी है। आइये समझे एक उदहारण से - 

चिंटू के दो पडोसी हैं। एक को हम शर्मा जी मान लेते हैं और दूसरे को शुक्ला जी।  चिंटू जब भी अपनी गली में घूम रहा होता है तो अक्सर शर्मा जी दिख जाते हैं, और वो कहते हैं, "क्यों रे चिंटू, दिन भर खेलता रहता है! पढ़ना नहीं होता?। जब शुक्ला जी चिंटू के घर आते हैं तो उन्हें चिंटू पढता हुआ नज़र आता है, तो शुक्ल जी कहते हैं चिंटू की मम्मी से, " आपका बेटा बड़ा होशियार है, कितना मन लगा कर पढता है।" चिंटू की मम्मी जवाब देती हैं, " नंबर तो आते नहीं लेकिन। अभी बैठा है डाँट खा कर। दिन भर खाता रहेगा और सोता रहेगा तो नंबर आएंगे भी कैसे।" 

ये और बात है कि दुनिया में कोई ऐसा बच्चा है नहीं जो उतने नंबर ला पाए जितने उसके माता-पिता को खुश कर दे। खैर! 

यहां पर सब चिंटू के बारे में अपना-अपना नज़रिया बता रहे हैं। अलग-अलग रखें तो सभी गलत हैं। चिंटू का असली सच तब मिलता है जब तीनों बातों को साथ में रखा जाए। लेकिन फ़िर भी पूरा सच नहीं मिलेगा। यही है अनेकांतवाद।

अनेकांतवाद को आसान शब्दों में ऐसे समझाया जाता है कि हर इंसान का अपना नज़रिया, अपना विचार होता है, और हमें हर नज़रिये, हर विचार का आदर करना चाहिए। किसी को गलत नहीं ठहराना चाहिए। 

लेकिन हम अगर इस शब्द का संधि विच्छेद करें, 

अनेकांतवाद = अनेक + अंत + वाद

अनेक - बहुत सारे

अंत - छोर 

वाद - कथन 

तो ये बनेगा कि किसी भी कथन के, यानी जो बात कही गयी है, उसके बहुत सारे छोर यानी पहलु होते है। कोई बात जो कई कही गयी है वो अपने में ही कभी भी पूरी नहीं होती। 

अनेकांतवाद को अंग्रेजी में कहा जाता है many - sidedness या many - foldedness। अनेकांतवाद को समझने के लिए छः अंधों और एक हाथी की कहानी का वर्णन प्रायः मिलेगा।  

अगर आप कोई वैज्ञानिक हैं या कोई शोधकर्ता हैं, तो आप अनेकांतवाद को ध्यान में रख कर अपने विषय के अधिक से अधिक पहलुओं को खोजेंगे। उससे आपकी शोध काफ़ी गहरी और सच के करीब होती चली जाएगी, मगर फ़िर भी पूरा सच नहीं। 

क्योंकि अनेकांतवाद में ५, १० या १०० पहलुओं की बात नहीं कही गयी, अनेक पहलुओं की बात कही है, इसीलिए ये कहा जाता है कि आप किसी भी बात के सभी पहलुओं को कभी नहीं जान सकते। जो जान गए तो आप कहलायेंगे केवलज्ञानी, जिसे हम किसी और दिन समझेंगे। 

यह सिद्धांत न सिर्फ बड़े निर्णय लेने में, बल्कि छोटी-छोटी बातों में भी बड़ा काम आता है। जैसे कि अगर आप इसको हमेशा ज़हन में रखेंगे तो किसी के बारे में भी आप पहली नज़र में राय बनाना छोड़ देंगे। आपको हमेशा लगेगा कि शायद जो मैंने देखा है सुना है वो गलत भी हो सकता है और सही भी है तो ये पूरा सच तो हो ही नहीं सकता। आप किसी व्यक्ति को बेहतर जान पाएंगे और उसके प्रति संवेदनशील हो पाएंगे

ये सिद्धांत आपको हमेशा जिज्ञासु बनाये रखता है, और सबसे ख़ास बात ये आपको एक तरफ़ा या पक्षपाती होने से बचाता है, जिसकी आज के समय, जो की बड़ा polarized और extremist है, को बहुत ज़रूरत है। 

अब अनेकांतवाद के नाम में अनेक अंत है तो अब आप ये भी समझ गए होंगे कि इसको समझाने का और इसको समझने का भी एक ही तरीका नहीं हो सकता। इसको जितना भी समझ पाया या कोई बढ़िया उदहारण बना पाया तो इसमें जोड़ता रहूंगा।

अगर आपको यह तरीका अच्छा लगा हो तो टिपण्णी ज़रूर कीजिये और कोई त्रुटि हो तब भी बताइये। 

परस्परोपग्रहो जीवानाम् !

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