परस्परोपग्रहो जीवानाम् - यह जैन दर्शन के आचार्य श्री उमास्वामी/उमास्वाति जी द्वारा संस्कृत में लिखे ग्रन्थ "तत्त्वार्थ सूत्र" के पांचवे अध्याय का इक्कीसवां श्लोक है। परस्परोपग्रहो जीवानाम् को जैन धर्म का आदर्श माना गया है।
इस शब्द का संधि विच्छेद करते हैं तो ये मिलता है,
परस्परोपग्रहो जीवानाम् = परस्पर + उप + गृह + जीवानाम्
परस्पर - एक दूसरे
उप - के प्रति
गृह - सहायक या सेवक
जीवानाम् - जीव
यानी सभी जीव एक दूसरे के प्रति सहायक या सेवक की भूमिका में हैं। सभी जीव से मतलब है, सूक्ष्म जीव से लेकर इंसान तक सभी जीव। इस दुनिया के सारे जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं, एक दूसरे से बंधे हुए हैं, जुड़े हुए हैं। हमारे उपकार में किसी न किसी जीव का योगदान रहता है, और हम भी किसी न किसी जीव का उपकार करते हैं।
हम सब अलग-अलग हैं फ़िर भी बंधे हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं। इस बात को एक उदहारण से समझते हैं।
एक कमीज़ को देखिये। कहने को यह एक कमीज़ है लेकिन ये कई अलग - अलग टुकड़ों से बनी है। इस कमीज़ का हर एक टुकड़ा, चाहे कितना भी उच्च गुणवत्ता का और कितने भी सुन्दर रंगों का क्यों न हो, अलग-अलग रखें तो बेकार है, लेकिन जोड़ दें तो कमीज़ बनता है। पूरी कमीज़ को बने रहने में सारे टुकड़े एक दूसरे पर निर्भर है। किसी को बड़ा, छोटा, ज़्यादा या कम ज़रूरी नहीं कह सकते। इसी तरह अगर हम कमीज़ के एक टुकड़े को ध्यान से देखें तो वह कितने धागों के जुड़े रहने से बना है। बंधे रहने के लिए हर धागा दूसरे धागे पर निर्भर है।
आप अकेले ही बहुत कुछ कर रहे हो दुनिया के लिए ये सोचना भी गलत है और आप हमेशा किसी न किसी पर निर्भर ही रहोगे ये मानना भी गलत है। हम सभी को सभी की ज़रूरत है।
जब-जब इंसान मान और लोभ में आकर इस व्यवस्था से अपने आप को बाहर कर लेता है, तब-तब हमें अव्यवस्था, असंतुलन और अशांति देखने को मिलती है। आज के समय में अगर हम अपने चारों तरफ देखें तो ऐसा माहौल बढ़ता ही जा रहा है कई कारणों से।
जैसे हम जानवरों, पेड़-पौधों, हवा, पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं, लेकिन हमने इनका ख़्याल रखना, इनके बारें में सोचना बहुत कम कर दिया है, और इस वज़ह हम इन क्षेत्रों में लगातार तकलीफों की तरफ बढ़ रहे हैं।
हमारे नेता बन्दर बाँट का खेल खेल कर हमें बाँट देते हैं, और हम आसानी से उनकी बातों में आकर एक-दूसरे से झगड़ लेते हैं। नेताओं द्वारा खींची हुई लकीरों के कारण हम दंगो में अपनी जान गवां देते हैं। ये भी असंतुलन ही है जब हम भूल जाते हैं कि हमे एक-दूसरे का ख़्याल रखना है।
चूँकि मैं एक आदर्शवादी और आशावादी इंसान हूँ तो मुझे लगता है चाहे समय जैसा भी हो, चारों तरफ कुछ भी चल रहा हो, अगर हमें परस्परोपग्रहो जीवानाम् में विश्वास है तो इस पर अमल हर क्षण करना चाहिए। समय बदले न बदले आप तो बदल ही जायेंगे अच्छे के लिए। शुरुआत तो खुद से ही होती है।
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